Best Mirza Ghalib Shayari in Hindi | मिर्जा गालिब शायरी हिंदी में
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे,
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे।
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जिंदगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते,
कफन भी लेते है तो अपनी जिंदगी देकर !
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ग़ालिब' बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे,
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे।
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मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था,
दिल भी या-रब कई दिए होते।
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mirza ghalib shayari
रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज, मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं।
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मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का,
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले।
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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक, कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक।
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चंद तस्वीर-ए-बूतान चंद हसीनो के ख़ुतूत
बाद मरने के मेरे घर से ये सामान निकला
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galib ki shayari in hindi
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़, वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।
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हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है,
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है।
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कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइज़, पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले।
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गुजर रहा हूँ यहाँ से भी गुजर जाउँगा,
मैं वक्त हूँ कहीं ठहरा तो मर जाउँगा !
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ghalib shayari on love
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया,
वर्ना हम भी आदमी थे काम के ।
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वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है,
कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं।
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ये मसैल-ए-तसव्वुफ़ ये तेरा बयान ग़ालिब
तुझे हम वली समझते जो ना बड़ा खवर होता
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हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी,
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती।
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ghalib shayari
कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता,
तुम ना होते ना सही ज़िक्र तुम्हारा होता !
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जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन,
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए।
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क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन
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ghalib ki shayari
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता।
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हम को उन से वफा की है उम्मीद,
जो नहीं जानते वफा क्या है !
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इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया,
दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया।
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mirza ghalib best shayari in Hindi
होगा कोई ऐसा भी के ग़ालिब को ना जाने
शायर तो वो अच्छा है पर बदनाम बहुत है
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मौत पे भी मुझे यकीन है,
तुम पर भी ऐतबार है,
देखना है पहले कौन आता है,
हमें दोनों का इंतजार है !
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मै से ग़रज़ नशात है किस रूसियाह को
इक गुनाह बेखुदी मुझे दिन रात चाहिए
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बक रहा हूँ जूनून में क्या क्या कुछ
कुछ ना समझे खुदा करे कोई !